Matangi Kavach

Matangi Kavach/मातंगी कवच

Matangi Kavach (मातंगी कवच): Goddess Matangi is the ninth Mahavidya from ten Mahavidyas. She bestows learning, perception, knowledge, natural ability to do anything. Matangi  blesses her Sadhak with knowledge of music, speech, arts, power. She finishes all the imperfections occurred in marriage of a girl. Maa Matangi Sadhana gives you immediate result. She makes her Sadhak wealthy, good speaker and fortunate and he/she gets power of Vashikaran, uchatan, stambhan also.

In Hindu culture earlier Matangi Devi was considered to be associated with omens, pollution, inauspicious activities and due to that she was regarded as Ucchishta Matangi or Ucchishta Chandelling. She was offered leftover food or food that is partially eaten since they were considered to be impure. Despite of all these differentiation, she is also related to one of the Mahavidyas.

She is also known as the goddess of learning, knowledge, music, arts and spoken words and for that she is also called Mantrini. It means the mistress of sacred mantras. Matangi is considered to be the Tantric form of Saraswati, the goddess of music and learning. Like Saraswati, Matangi governs speech, music, knowledge and the arts.

Her worship is prescribed to acquire supernatural powers, especially gaining control over enemies, attracting people to one, acquiring mastery over the arts and gaining supreme knowledge. Matangi is often associated with pollution, inauspiciousness and the periphery of Hindu society, which is embodied in her most popular form, known as Ucchishta-Chandalini or Ucchishta-Matangini.

She is described as an outcaste (Chandalini) and offered left-over or partially eaten food (Ucchishta) with unwashed hands or food after eating, both of which are considered to be impure in classical Hinduism. Matangi is often represented as emerald green in colour. While Ucchishta-Matangini carries a noose, sword, goad, and club, her other well-known form, Raja-Matangi, plays the veena and is often pictured with a parrot.

Matangi Kavach Benefits:

  • Matangi Kavach helps you to purify your soul.
  • Reciting Matangi Kavach will help you fulfill all your dreams and desires.
  • Many worship Matangi Kavach to get supernatural powers through which one can control their enemies, attract people towards them, etc.
  • Matangi Kavach helps you to fight poverty and helplessness.
  • Worshiping Matangi Kavach will protect you from black magic and people with evil intentions.
  • Matangi Kavach helps you to gain super knowledge and become the supreme self.
  • You will be away from physical, mental, emotional and financial instability if you recite Matangi Kavach will guide you to the right path and will give you strength to work hard.
  • She also encourages you to be considerate, sympathetic and empathetic to people.
  • Matangi Kavach takes you to the path of self consolation and gives you courage to lift others in various ways.

Who has to recite Matangi Kavach:

  • Matangi Kavach is very powerful Kavach which is must to read for those, who are not finding the best of end.
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मातंगी कवच/Matangi Kavach

श्री देव्युवाच:

साधु-साधु महादेव। कथयस्व सुरेश्वर।
मातंगी-कवचं दिव्यं, सर्व-सिद्धि-करं नृणाम् ॥

श्री-देवी ने कहा – हे महादेव। हे सुरेश्वर। मनुष्यों को सर्व-सिद्धि-प्रददिव्य मातंगी-कवच अति उत्तम है, उस कवच को मुझसे कहिए।

श्री ईश्वर उवाच:

श्रृणु देवि। प्रवक्ष्यामि, मातंगी-कवचं शुभं।
गोपनीयं महा-देवि। मौनी जापं समाचरेत् ॥

ईश्वर ने कहा – हे देवि। उत्तम मातंगी-कवच कहता हूँ, सुनो। हे महा-देवि। इस कवच को गुप्त रखना, मौनी होकर जप करना।

विनियोग :

ॐ अस्य श्रीमातंगी-कवचस्य श्री दक्षिणा-मूर्तिः ऋषिः । विराट् छन्दः । श्रीमातंगी देवता । चतुर्वर्ग-सिद्धये जपे विनियोगः ।

ऋष्यादि-न्यास:

श्री दक्षिणा-मूर्तिः ऋषये नमः शिरसि ।
विराट् छन्दसे नमः मुखे ।
श्रीमातंगी देवतायै नमः हृदि ।
चतुर्वर्ग-सिद्धये जपे विनियोगाय नमः सर्वांगे ।

मूल कवच-स्तोत्र:

ॐ शिरो मातंगिनी पातु, भुवनेशी तु चक्षुषी ।
तोडला कर्ण-युगलं, त्रिपुरा वदनं मम ॥
पातु कण्ठे महा-माया, हृदि माहेश्वरी तथा ।
त्रि-पुष्पा पार्श्वयोः पातु, गुदे कामेश्वरी मम ॥
ऊरु-द्वये तथा चण्डी, जंघयोश्च हर-प्रिया ।
महा-माया माद-युग्मे, सर्वांगेषु कुलेश्वरी ॥
अंग प्रत्यंगकं चैव, सदा रक्षतु वैष्णवी ।
ब्रह्म-रन्घ्रे सदा रक्षेन्, मातंगी नाम-संस्थिता ॥
रक्षेन्नित्यं ललाटे सा, महा-पिशाचिनीति च ।
नेत्रयोः सुमुखी रक्षेत्, देवी रक्षतु नासिकाम् ॥
महा-पिशाचिनी पायान्मुखे रक्षतु सर्वदा ।
लज्जा रक्षतु मां दन्तान्, चोष्ठौ सम्मार्जनी-करा ॥
चिबुके कण्ठ-देशे च, ठ-कार-त्रितयं पुनः ।
स-विसर्ग महा-देवि । हृदयं पातु सर्वदा ॥
नाभि रक्षतु मां लोला, कालिकाऽवत् लोचने ।
उदरे पातु चामुण्डा, लिंगे कात्यायनी तथा ॥
उग्र-तारा गुदे पातु, पादौ रक्षतु चाम्बिका ।
भुजौ रक्षतु शर्वाणी, हृदयं चण्ड-भूषणा ॥
जिह्वायां मातृका रक्षेत्, पूर्वे रक्षतु पुष्टिका ।
विजया दक्षिणे पातु, मेधा रक्षतु वारुणे ॥
नैर्ऋत्यां सु-दया रक्षेत्, वायव्यां पातु लक्ष्मणा ।
ऐशान्यां रक्षेन्मां देवी, मातंगी शुभकारिणी ॥
रक्षेत् सुरेशी चाग्नेये, बगला पातु चोत्तरे ।
ऊर्घ्वं पातु महा-देवि । देवानां हित-कारिणी ॥
पाताले पातु मां नित्यं, वशिनी विश्व-रुपिणी ।
प्रणवं च ततो माया, काम-वीजं च कूर्चकं ॥
मातंगिनी ङे-युताऽस्त्रं, वह्नि-जायाऽवधिर्पुनः ।
सार्द्धेकादश-वर्णा सा, सर्वत्र पातु मां सदा ॥

अर्थ:

मातंगिनी देवी मेरे मस्तक की रक्षा करे, भुवनेश्वरी दो नेत्रों की, तोतला देवी दो कर्णों की, त्रिपुरा देवी मेरे बदन-मण्डल की, महा-माया मेरे कण्ठ की, माहेश्वरी मेरे हृदय की, त्रिपुरा दोनों पार्श्वों की और कामेश्वरी मेरे गुह्य-देश की रक्षा करे। चण्डी दोनों ऊरु की, रति-प्रिया जंघा की, महा-माया दोनों चरणों की और कुलेश्वरी मेरे सर्वांग की रक्षा करे। वैष्णवी सतत मेरे अंग-प्रत्यंग की रक्षा करे, मातंगी ब्रह्म-रन्घ्र में अवस्थान करके मेरी रक्षा करे। महा-पिशाचिनी बराबर मेरे ललाट की रक्षा करे, सुमुखी चक्षु की रक्षा करे, देवी नासिका की रक्षा करे।

महा-पिशाचिनी वदन के पश्चाद्-भाग की रक्षा करे, लज्जा मेरे दन्त की और सम्मार्जनी-हस्ता मेरे दो ओष्ठों की रक्षा करे। हे महा-देवि। तीन ‘ठं’ मेरे चिबुक और कण्ठ की और तीन ‘ठं’ सदा मेरे हृदय-देश की रक्षा करे। लीला माँ मेरे नाभि-देश की रक्षा करे, कालिका चक्षु की रक्षा करे, चामुण्डा जठर की रक्षा करे और कात्यायनी लिंग की रक्षा करे। उग्र-तारा मेरे गुह्य की, अम्बिका मेरे पद-द्वय की, शर्वाणी मेरे दोनों बाहुओं की और चण्ड-भूषण मेरे हृदय-देश की रक्षा करे।

मातृका रसना की रक्षा करे, पुष्टिका पूर्व-दिशा की तरफ, विजया दक्षिण-दिशा की तरफ और मेधा पश्चिम दिशा की तरफ मेरी रक्षा करे। श्रद्धा नैऋत्य-कोण की तरफ, लक्ष्मणा वायु-कोण की तरफ, शुभ-कारिणी मातंगी देवी ईशान-कोण की तरफ, सुवेशा अग्नि-कोण की तरफ, बाला उत्तर दिक् की तरफ और देव-वृन्द की हित-कारिणी महा-देवी ऊर्ध्व-दिक् की तरफ रक्षा करे। विश्व-रुपिणि वशिनी सर्वदा पाताल में मेरी रक्षा करे। “ॐ ह्रीं क्लीं हूं मातंगिन्यै फट् स्वाहा” – यह सार्द्धेकादश-वर्ण-मन्त्रमयी मातंगी सतत सकल स्थानों में मेरी रक्षा करे।

फल-श्रुति:

इति ते कथितं देवि । गुह्यात् गुह्य-तरं परमं ।
त्रैलोक्य-मंगलं नाम, कवचं देव-दुर्लभम् ॥
यः इदं प्रपठेत् नित्यं, जायते सम्पदालयं ।
परमैश्वर्यमतुलं, प्राप्नुयान्नात्र संशयः ॥
गुरुमभ्यर्च्य विधि-वत्, कवचं प्रपठेद् यदि ।
ऐश्वर्यं सु-कवित्वं च, वाक्-सिद्धिं लभते ध्रुवम् ॥
नित्यं तस्य तु मातंगी, महिला मंगलं चरेत् ।
ब्रह्मा विष्णुश्च रुद्रश्च, ये देवा सुर-सत्तमाः ॥
ब्रह्म-राक्षस-वेतालाः, ग्रहाद्या भूत-जातयः ।
तं दृष्ट्वा साधकं देवि । लज्जा-युक्ता भवन्ति ते ॥
कवचं धारयेद् यस्तु, सर्वां सिद्धि लभेद् ध्रुवं ।
राजानोऽपि च दासत्वं, षट्-कर्माणि च साधयेत् ॥
सिद्धो भवति सर्वत्र, किमन्यैर्बहु-भाषितैः ।
इदं कवचमज्ञात्वा, मातंगीं यो भजेन्नरः ॥
झल्पायुर्निधनो मूर्खो, भवत्येव न संशयः ।
गुरौ भक्तिः सदा कार्या, कवचे च दृढा मतिः ॥

हे देवि। तुमसे मैंने यह “त्रैलोक्य-मोहन” नाम का अति गुह्य देव दुर्लभ कवच कहा है। जो नित्य इसका पाठ करता है, वह सम्पत्ति का आधार होता है और अतुल परमैश्वर्य प्राप्त करता है, इसमें संशय नहीं है। यथा-विधि गुरु-पूजा करके उक्त कवच का पाठ करने से ऐश्वर्य, सु-कवित्व और वाक्-सिद्धि निश्चय ही प्राप्त की जा सकती है। मातंगी उसे नित्य नारी-संग दिलाती है। हे देवि। ब्रह्मा, विष्णु, महेश्वर, दूसरे प्रधान देव-वृन्द, ब्रह्म-राक्षस, वैताल, ग्रह आदि भूत-गण उस साधक को देखकर लज्जित होते हैं।

जो व्यक्ति इस कवच को धारण करता है, वह सर्व-सिद्धियाँ लाभ करता है। नृपति-गण उसका दासत्व करते हैं। वह षट्-कर्म साधन कर सकता है। अधिक क्या, वह सर्वत्र सिद्ध होता है। इस कवच को न जानकर, जो मातंगी की पूजा करता है, वह अल्पायु, धन-हीन और मूर्ख होता है। गुरु-भक्ति सर्वदा परमावश्यक है। इस कवच पर भी दृढ़ मति अर्थात् पूर्ण विश्वास रखना परम कर्तव्य है। फिर मातंगी देवी सर्व-सिद्धियाँ प्रदान करती है।

Matangi Kavach/मातंगी कवच विशेष:

मातंगी कवच के साथ-साथ यदि मातंगी महाविद्या यंत्र की पूजा और पाठ किया जाए तो, मातंगी कवच का बहुत लाभ मिलता है, मातंगी फ्रेम की पूजा करने से मनोवांछित कामना पूर्ण होती है, समस्याओं और नकारात्मक ऊर्जा से बचने के लिए मातंगी महाविद्या का पाठ करना चाहिए| यदि कोई साधक देवी मातंगी की साधना करना चाहता है तो साधक को मातंगी साधना पुस्तक के अनुसार ही साधना करनी चाहिए| यदि आप कोई नया काम शुरू नहीं कर पा रहे है या आप सोचते ज्यादा है तो आपको नाम और अंक का प्रभाव देखना चाहिए|